जलेबी, पेठा और खाजा जैसी मिठाइयों का स्वाद तो आपने बहुत बार चखा होगा. पर क्या आप जानना चाहेंगे जलेबी, पेठा, दालबाटी का इतिहास क्या है. कहां से ये चीजें आईं और हमारे खान-पान का अहम हिस्सा हो गईं. आज हम आपको इनसे जुड़ी खासियत से रू-ब-रू करवाएंगे.
अरब से आई जलेबी
देश की सबसे खास मिठाइयों में से एक है जलेबी. पर यह इसके बारे में यह बात आपको हैरान कर सकती है कि यह भारत की मिठाई नहीं है बल्कि इसकी खोज पश्चिमी एशिया में हुई थी. मतलब कि अरब देश से लाया गया पकवान है. ऐसा माना जाता है कि पहली बार जलेबी 15वीं शताब्दी बनाई गई थी. खास बात यह है कि इतने सालों बाद भी इसका स्वाद बिलकुल नहीं बदला, लेकिन जगह और भाषा के अनुसार इसका नाम बदल गया.
राजा को पसंद आई मिठाई नाम पड़ा मैसूर पाक
अपने जगह के नाम से ही खास होने वाला मैसूर पाक की खोज मैसूर में ही हुई है. यह 20 वीं सदी की बात है. मैसूर के राजा नालावादी कृष्णा को मीठे और स्वादिष्ट पकवान बहुत पसंद थे. एक दिन उनके खानसामे में नई मिठाई बनाई गई. जब राजा ने इस मिठाई को चखा, तो बहुत खुश हुए. राजा को यह मिठाई इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे बनाने वाले से इसका नाम पूछा. उसने कहा कि इस मिठाई की खोज मैसूर में हुई है, तो इसका नाम मैसूर पाक होगा. मिठाई को कन्नड़ भाषा में पाक कहा जाता है.
बिहार ने दिया खाजा
जैसा नाम वैसा ही स्वाद है खाजा का. यह बिहार की मशहूर मिठाइयों में से एक है. इसका उल्लेख पहली बार मौर्य और गुप्त काल में देखने को मिला. अगर आपको इसका असली स्वाद चाहिए है तो यह सिर्फ बिहार के राजगीर में ही मिलेगा.
रजवाड़ों का खास खाना था दाल बाटी
दाल बाटी का स्वाद चखेंगे तो आपके दिलो-दिमाग में राजस्थान की तस्वीर छाने लगेगी. दाल बाटी राजस्थान और रजवाड़ों का उस वक़्त का खाना हुआ करता था, जब वो जंग के लिए जाया करते थे. बाटी को शुद्ध देशी घी में डुबोकर खाया जाता है और इसमें पानी का भी बहुत कम इस्तेमाल होता है. ऐसे में सिपाहियों को जंग में लड़ने की ताकत मिलती थी.
ताजमहल के बनते वक्त बना था पेठा
पेठा की कहानी ताज महल से जुड़ी हुई है. ऐसा कहा जाता है कि ताज महल के निर्माण के दौरान करीब 21 हजार मजदूर रोजाना एक से खाने से ऊब गए थे. ये बात शाहजहां तक जा पहुंची. उन्होंने अपनी समस्या को ताज महल के आर्किटेक्ट उस्ताद इसा इफ़िदी को बताई, जो इस समस्या का समाधान जानने के लिए पीर नक्शबंदी साहिब के दरबार जा पहुंचे. मान्यताओं की मानें तो पेठा बनाने का तरीका खुद अल्लाह ने बक्शा था. जिसके बाद 500 खानसामों ने मिल कर पहली बार पेठा बनाया था. तब से लेकर आज तक पेठा हमारे जुबां पर रच बस गया है.
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दम बिरयानी
जिस बिरयानी को हम आज बड़े चाव से खाते हैं और बेहतरीन स्वाद पाने के लिए पैसे खर्च करने से नहीं चूकते. दरअसल में वो बिरयानी गरीबों के लिए बनाई जाती थी. अवध के नवाब ने अपने खानसामों को एक ऐसा पकवान बनाने का हुक्म दिया था जो कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए हो. तब खानसामों ने बड़ी हांडियों का इस्तेमाल किया. इन हांडियों में ढेर सारे खड़े मसालों को चावल और चिकन के साथ मिलाकर पकाया गया था. जो जायका तैयार हुआ उससे बिरयानी का नाम पड़ा.
आप हर वक्त खाने-खिलाने का ढूंढते हैं बहाना तो ये है आपका परमानेंट ठिकाना. कुछ खाना है, कुछ बनाना है और सबको दिखाना भी है, लेकिन अभी तक आपके हुनर और शौक को नहीं मिल पाया है कोई मुफीद पता तो आपकी मंजिल का नाम है पकवान गली.
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